राजनांदगांव। कान्यकुब्ज सभा राजनांदगांव एवं नांदगांव साहित्य एवं संस्कृति परिषद के संयुक्त तत्वावधान में शुक्रवार को त्रिवेणी परिसर में हिंदी साहित्य के मूर्धन्य रचनाकार डॉ. बलदेव प्रसाद मिश्र की 127वीं जयंती पर पुष्पांजलि कार्यक्रम आयोजित किया गया।
मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित नगर पालिक निगम के महापौर मधुसूदन यादव ने डॉ. मिश्र की प्रतिमा पर पुष्प अर्पित कर उन्हें श्रद्धांजलि दी। इस अवसर पर उन्होंने कहा कि डॉ. मिश्र के साहित्यिक योगदान ने न केवल छत्तीसगढ़ बल्कि पूरे हिंदी जगत में राजनांदगांव को विशिष्ट पहचान दिलाई। उन्होंने कहा कि ऐसे साहित्य मनीषियों की स्मृति को अक्षुण्ण बनाए रखना हमारा कर्तव्य है।
महापौर ने कहा कि त्रिवेणी परिसर की कल्पना प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री एवं वर्तमान विधानसभा अध्यक्ष डॉ. रमन सिंह ने अपने कार्यकाल में की थी। वे इस परिसर के शिल्पी रहे हैं। इसलिए इसके संरक्षण एवं संवर्धन के लिए हम सभी कृतसंकल्पित हैं।
प्रतिमाओं पर छत निर्माण और सौंदर्यीकरण की मांग
कार्यक्रम में कान्यकुब्ज सभा के अध्यक्ष प्रदीप मिश्रा (सेवानिवृत्त डीएसपी) ने जनहित में प्रतिमाओं के ऊपर छत निर्माण, परिसर के सौंदर्यीकरण, स्वच्छता, सुरक्षा एवं असामाजिक तत्वों पर नियंत्रण की मांग महापौर से की। महापौर ने समस्याओं के शीघ्र निराकरण का आश्वासन भी दिया।
विशिष्टजन हुए उपस्थित
कार्यक्रम में प्रो. शंकरमुनि राय (हिंदी विभागाध्यक्ष, दिग्विजय कॉलेज), पं. पु. बक्शी जी के नाती अधिवक्ता संजय श्रीवास्तव, वार्ड पार्षद राजा माखीजा, वरिष्ठ पार्षद संतोष पिल्ले, अखिलेश तिवारी (अध्यक्ष, नांदगांव साहित्य एवं संस्कृति परिषद), डीसी जैन (अध्यक्ष, शिवनाथ तट क्षेत्रीय विकास समिति), प्रो. आरपी दीक्षित, अजय शुक्ला, कृष्णकांत तिवारी, वीडी तिवारी, शैलेन्द्र शुक्ला, विवेक शुक्ला, जगदीश प्रसाद मिश्रा, संजीव मिश्रा, राकेश मिश्रा, भूपेंद्र बाजपेई, मनीष मिश्रा, शिवम शुक्ला, धीरज द्विवेदी, अखिलेश मिश्रा, दुर्गेश त्रिवेदी, प्रकाश वाधवानी सहित बड़ी संख्या में गणमान्य नागरिक, वार्डवासी एवं कॉलेज के छात्र-छात्राएं मौजूद रहे।
राम काव्य परंपरा के शिखर रचनाकार थे मिश्र
इस अवसर पर बोलते हुए प्रो. शंकरमुनि राय ने कहा कि डॉ. बलदेव प्रसाद मिश्र राम काव्य परंपरा के शीर्ष रचनाकारों में माने जाते हैं। वे देवतुल्य साहित्यकार थे। उनके साहित्य में भारतीय संस्कृति की गूढ़ गहराई और लोकमंगल की भावना स्पष्ट रूप से दृष्टिगोचर होती है।
कार्यक्रम का संचालन संयोजक मंडल द्वारा किया गया और अंत में सभी ने डॉ. मिश्र के साहित्यिक योगदान को स्मरण कर नमन किया।